वसीयत – हिंदी कहानी | Vasiyat Hindi Kahani | Hindi Story

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वसीयत - हिंदी कहानी | Vasiyat Hindi Kahani | Hindi Story | Stories | Kahaniya

वसीयत – हिंदी कहानी | Vasiyat Hindi Kahani | Hindi Story | Stories | Kahaniya

शारदा काम ख़त्म करके बैठक में बैठकर पेपर देख रही थी । उसी समय गेट के खुलने की आवाज़ आई तो उठकर देखने गई थी कि कौन आया है देखा तो उसे आश्चर्य हुआ कि बड़े भाई शंकर थे । उनके हाथों से बैग लेकर उन्हें सादर सहित घर के अंदर ले गई । उन्हें बिठाकर पानी लाने रसोई में गई चाय के लिए पानी चढ़ा दिया था ।उन्हें पानी देने के लिए आते हुए सोच रही थी कि यह अचानक भाई क्यों आए होंगे तीन महीने पहले घटी हुई घटना के बाद उसने सोच लिया था कि अब मेरा मायका नहीं रहा है पर आज भाई अचानक….

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उसने भाई को पानी पिलाया और कुशल मंगल पूछने पर उन्होंने सर हिलाकर सब ठीक है कहा । बात को आगे ना बढ़ाते हुए रसोई में गई और चाय बनाकर भाई को दे दी । भाई ज़्यादातर बातें कम ही करता था । वह खुद भी बात कम करती थी इसलिए वातावरण शांत था । भाई के पसंद की सब्ज़ी बनाने अंदर गई । शारदा के पति सुशांत दोपहर का खाना घर आकर खाते थे। उन्होंने आते ही शंकर को देखा और हेलो कहा ।

शारदा ने कहा खाना लग गया है खाते हुए बातें कर लीजिए । दोनों खाने की मेज पर बैठ गए शारदा खाना परोसने लगी ।

शंकर ने कहा सुशांत आप और शारदा दोनों ही इतने बड़े घर में रहते हो हाँ मुझे याद है कि आपकी दो बेटियाँ भी हैं । सोचो जरा दोनों की शादियाँ हो गई तो वे अपने ससुराल चली जाएँगी । यहाँ आए भी तो मेहमान बनकर।

सुशांत ने कहा वह तो ठीक है पर आप कहना क्या चाहते हैं?

शंकर ने कहा कि पिता जी ने जो घर शारदा को दिया है उसे बेच दीजिए मैं ख़रीद लेता हूँ अभी वहाँ इस घर का दाम एक लाख तक चल रहा है चाहे तो आप भी पूछताछ कर लीजिए। सुशांत असल में मैं उस कांपाउंड में हम दोनों भाइयों के घर ही रहें ऐसा चाहता हूँ ।

सुशांत बहुत ही व्यवहारशील व्यक्ति हैं उन्होंने कहा कि आप थोड़ा आराम कर लीजिए मैं शाम को आ जाऊँगा तब बात करेंगे ।

सुशांत के ऑफिस जाने के बाद शंकर ने शारदा से बात भी नहीं की और कमरे में आराम करने के लिए चले गए । शारदा को खाना खाने की इच्छा नहीं हुई इसलिए सब कुछ समेटकर अपने कमरे में अपनी पसंदीदा जगह खिड़की के पास बैठकर बाहर देखने लगी और पुरानी यादों में खो गई थी ।

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शारदा के पिता एक छोटे से गाँव में काम करते थे । दो भाइयों के बाद उसका जन्म हुआ था और बहुत ही प्यार से पलने लगी थी । उस ज़माने में ही पिता ने बहुत बड़ी ज़मीन ख़रीदी और दो पोर्शन वाला घर बनाया था । शारदा को पढ़ने की इच्छा थी परंतु पिता ने सुशांत के घर शादी करके उसे वहाँ भेज दिया था ।

सुशांत की माँ बहुत तेज तर्रार औरत थी । पिता जी के दिए हुए पचास हज़ार रुपये का उपयोग करके ननंद की शादी करा दी और शारदा को ताने देती थी कि मायके से कुछ नहीं लेकर आई है । सुशांत अपनी माँ की तरफ़दारी करते थे ।

एक बार तो हद ही हो गई थी । सास बहू के बीच छोटी सी झड़प हो गई थी । सास और सुशांत ने उससे कह दिया कि अपने घर चली जाए यहाँ रहने की कोई ज़रूरत नहीं है । सुशांत ने उसे उसके दोनों बच्चों के साथ बस में चढ़ा दिया था । जब वह मायके पहुँची तो सबसे पहले सब खुश हो गए और बच्चों के साथ खेलने लगे । माँ ने मुझसे पूछा कि शारदा बेटा तुम मायके आई हो इसकी हमें बहुत ख़ुशी हुई है परंतु यह अचानक कैसे आ गई है ना चिट्ठीपत्री ना कोई ख़बर की है ।

शारदा ने माँ को सारी बातें बता दिया था । माँ ने उसे समझाया कि बेटा अब तेरा घर तेरा ससुराल ही है । परिवार में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं उन्हें अनदेखा करते हुए ही आगे बढ़ते रहना ही ज़िंदगी है । एक हफ़्ते के बाद माँ के कहने पर की कि मैं अकेली काम नहीं कर सकती हूँ इसलिए सुशांत शारदा को लेने आ गया था । शारदा बच्चों को लेकर उसके साथ वापस जाने लगी तो माँ ने सब कुछ जानते हुए भी फिर से समझा दिया था कि अब वही तुम्हारा घर है । कुछ समय पश्चात सास ससुर की मृत्यु हो गई थी । शारदा ने भी सालों में चुप्पी साध ली थी क्योंकि मायके में अब माँ नहीं रही। पिता को देखने के लिए कभी-कभी चली जाती थी । विजय छोटा भाई है जिसकी नौकरी शहर में लगी थी उसने अपने घर को किराए पर दे दिया था । बड़ा भाई शंकर के साथ पिता रहते थे उन्होंने रिटायर होने के बाद पीछे जो जगह थी वहाँ दो कमरों का एक घर बना लिया था । सबने सोचा कि दोनों लड़कों के लिए घर है फिर एक घर क्यों बनाया है ? उन्होंने जवाब नहीं दिया था ।

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तीन महीने पहले की बात थी कि शारदा के बड़े भाई ने उसे ख़बर भेजा कि पिताजी की तबियत बहुत ख़राब है तुम्हें याद कर रहे हैं जल्दी से आ जाओ । शारदा ने पति को पिता के बारे में बताया और अकेले ही मायके चली गई । वह जैसे ही पिता के घर पहुँची तो जैसे पिता उसका ही इंतज़ार कर रहे थे । उसको देखा और कुछ इशारों में कहना चाहा बड़े भाई ने कहा कि आप निश्चिंत रहिए आपके बाद भी शारदा यहाँ आती जाती रहेगी । पिता जी की उम्र हो गई थी । उनकी मृत्यु उसकी आँखों के सामने ही हो गई थी ।

बारह दिन कैसे बीत गए पता नहीं चला । सारे रिश्तेदार चले गए थे । सिर्फ़ दोनों भाभियों के मायके वाले ही रह गए थे। मैं भी अब जाना चाहती थी । शारदा ने भाभी से कहा कि मैं भी चलती हूँ । भाभी ने खाने की चीजें बाँध दी जो शारदा की बेटियों को पसंद है । अभी वह अपनी अटैची लेकर निकलने ही वाली थी कि बड़े भाई ने पीछे से पुकारा शारदा रुक जाओ कल चले जाना । शारदा को समझ में नहीं आया कि आज क्या है?

कुछ ही देर में बड़ा भाई किसी को साथ लेकर आया और घर में सब को एक जगह बैठने के लिए कहा । सब बच्चे आकर बैठ गए बहुओं के मायके वाले बाहर खड़े होकर अंदाज़ा लगा रहे थे कि शंकर वकील को साथ लेकर आया है क्या होने वाला है ।

वकील ने सभी बच्चों के समक्ष एक सील किया हुआ कवर निकाला और सबको पढ़कर सुनाया कि पीछे जो नया घर बना है वह शारदा के नाम पर है । जायदाद के नाम पर यह बड़ा घर आप दोनों के नाम माँ के ज़ेवर तीनों को बराबर बाँटा गया है ।

वकील के जाते ही बहुओं ने शारदा को ताने मारना शुरू कर दिया था कि शादी के समय दहेज और गहने दिए थे अब फिर से हिस्से में आ गई है । शंकर ने पीछे वाले घर के पेपर शारदा के हाथ में रख दिया और कहा थोड़े दिनों में ज़ेवर भी भेज देंगे । शारदा घर से बाहर आ रही थी किसी ने उससे बात नहीं किया । शारदा की लड़कियों के लिए भाभी ने जो कुछ भी बनाया था उसे देना वे भूल गई थी शायद!!!

इस घटना को घटे तीन महीने हो गए हैं और आज शंकर उनके घर आया है । कॉफी की सौंधी सी महक से उसके पैर बरबस ही रसोई की तरफ़ बढ़े वहाँ छोटी बिटिया माधवी ऑफिस से आकर कॉफी बना रही थी माँ को देखते ही कहा आज बड़े मामाजी अचानक हमारे घर आए हैं रास्ता तो नहीं भूल गए हैं। नाना जी की वसीयत के बाद वहाँ से कोई ख़बर नहीं थी । शारदा कुछ कहती उसके पहले ही सुशांत ऑफिस से शारदा कहते हुए आ गए थे । शंकर भी सोकर उठ गए थे सुशांत की आवाज़ सुनकर बैठक में आ गए थे । शारदा ने दोनों को चाय दिया था क्योंकि वे दोनों शाम को चाय ही पीते थे।

सुशांत ने कहा कि मैंने ऑफिस के लोगों से पता लगवाया है कि वहाँ एक लाख से ऊपर घर बिक रहे हैं । वह पैसा आ जाएगा तो शारदा के अकाउंट में डाल दूँगा , ज़रूरत पड़ने पर उपयोग में ला सकते हैं । शंकर ने कहा ठीक है मैं घर जाकर सारे प्रबंध कर देता हूँ एक दो हज़ार ज़्यादा चले भी गए तो क्या है बहन ही को मिलेंगे है ना शारदा । शंकर बहुत ही खुश था । उसने कहा थैंक्यू सुशांत मैं डर रहा था कि तुम मानोगे कि नहीं?

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माधवी अंदर कमरे से आई और कहा घर माँ के नाम पर है । नाना जी ने उन्हें दिया है । आप दोनों को नहीं लगता है कि उससे भी एक बार पूछे कि वह क्या चाहती है । मायका का घर माँ का नहीं है और ससुराल का घर माँ का नहीं है उसे काटते हुए सुशांत ने कहा माधवी यह घर माँ का ही तो है ।

वाहहह पापा हम जब छोटे थे तो आपने माँ

यह कहकर नाना जी के घर भेज दिया था कि यह घर तुम्हारा नहीं है । वहाँ नानी ने बताया कि यह घर तुम्हारा नहीं है बेटा तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा है । आज जब उनका अपना घर है तो आप उनसे बिना पूछे उसे बेचने की बात कर रहे हैं ।

आज की लड़की माधवी ने माँ की तरफ़ मुड़कर कहा माँ जहाँ ज़रूरत है वहाँ तो कुछ बोल दिया करो आप चुप कैसे रह सकती हैं। मामाजी और पापा वह माँ का घर है उसे वह नहीं बेचेगी क्यों माँ मैं ठीक कह रही हूँ । माधवी की बातें सुनकर शारदा की आँखें ख़ुशी से चमक गई और आँखों में ख़ुशी के आँसू आ गए और उसने हाँ में सर हिलाकर अपनी मर्ज़ी बता दिया। शारदा ने मन ही मन सोचा कि हाँ अब शारदा का घर नहीं बिकेगा ।

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