हिंदी कहानी (Hindi Kahani) – मेरी बेचैनी और उसका एहसास (Meri bechaini aur uska ehsaas)
प्रेम का मार्ग संभोग से निकलता है बिना संभोग कोई प्रेम नहीं होता
हमारी शादी को पाँच साल हो चुके हैं। समाज की नजर में हम एक परफेक्ट कपल हैं—एक-दूसरे की इज्जत करने वाले, हर सुख-दुख में साथ खड़े रहने वाले। लेकिन इस रिश्ते में कुछ ऐसा था, जो मेरे दिल को हमेशा अधूरा महसूस कराता था। एक खालीपन, जिसे मैं कभी ठीक से शब्दों में बयां नहीं कर पाई।
शादी के शुरुआती दिनों में मैंने इसे नजरअंदाज किया। सोचा, समय के साथ चीजें बदल जाएँगी, विक्रम समझ जाएगा। लेकिन साल दर साल बीतते गए, और मैं वहीं की वहीं खड़ी रही—अपनी भावनाओं और इच्छाओं को अपने ही अंदर दबाते हुए।
विक्रम मुझे बहुत प्यार करता है। वह मेरी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ख्याल रखता है। वह मुझे सम्मान देता है, कभी मुझ पर गुस्सा नहीं करता, मेरे हर फैसले में मेरा साथ देता है। लेकिन…
हिंदी कहानी (Hindi Kahani) – मेरी बेचैनी और उसका एहसास (Meri bechaini aur uska ehsaas)
लेकिन उसने कभी नहीं समझा कि प्रेम सिर्फ़ मन से नहीं, तन से भी महसूस किया जाता है। वह मुझसे दूर रहता, हर बार किसी न किसी बहाने से बच जाता। कभी थकान, कभी काम का दबाव, कभी यह तर्क कि प्रेम केवल स्पर्श या शारीरिक संबंध तक सीमित नहीं होता।
कई बार मैंने हिम्मत जुटाई, उससे बात करने की कोशिश की। एक रात मैंने पूछा—
“विक्रम, क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमारे रिश्ते में कुछ अधूरा है?”
उसने हल्के से मुस्कुराकर कहा,
“कैसा अधूरापन? मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, तुम्हारा सम्मान करता हूँ, हर सुख-दुख में तुम्हारे साथ हूँ। क्या यही प्रेम नहीं?”
उसकी बातों में सच्चाई थी, लेकिन अधूरी। मैंने उसकी आँखों में देखा और धीरे से कहा,
“लेकिन विक्रम, जब दो आत्माएँ जुड़ती हैं, तो उनके शरीर भी जुड़ने चाहिए। बिना स्पर्श, बिना भावनात्मक नज़दीकी के प्रेम अधूरा रह जाता है।”
हिंदी कहानी (Hindi Kahani) – मेरी बेचैनी और उसका एहसास (Meri bechaini aur uska ehsaas)
लेकिन उसने फिर वही पुराना तर्क दिया—”शरीर का मिलन प्रेम नहीं होता, असली प्रेम आत्मा का मिलन है।”
मैं चुप रह गई। शायद मैं ही गलत थी, या शायद मेरी भावनाएँ ज्यादा थीं।
मेरी बेचैनी और उसका एहसास
समय बीतता गया। मैं खुद को रोकने की कोशिश करती, लेकिन अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी। एक दिन, मैं चुपचाप बालकनी में बैठी थी। विक्रम आया और मेरे कंधे पर हाथ रखा।
“क्या हुआ, अदिति? तुम कुछ बदली-बदली सी लग रही हो।”
मेरे अंदर सारा दर्द उमड़ आया। मैंने पहली बार उसे खुलकर कहा,
“विक्रम, तुम्हें पता भी है कि जब तुम मुझसे दूर रहते हो, तो मुझे कैसा लगता है? मैं तुम्हें सिर्फ़ एक साथी नहीं, अपना प्रेमी भी मानती हूँ। लेकिन तुम्हारे लिए यह रिश्ता सिर्फ़ जिम्मेदारी बनकर रह गया है।”
विक्रम ने मेरी आँखों में देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। मैं जानती थी कि वह मुझसे प्यार करता है, लेकिन शायद मेरे एहसास को समझ नहीं पा रहा था। मैं उसकी परवाह करती थी, लेकिन मैं भी प्यार और अपनापन चाहती थी। मैं कोई कर्तव्य नहीं थी, मैं उसकी पत्नी थी—एक ऐसी स्त्री, जो प्रेम को पूरी तरह जीना चाहती थी।
उस रात मैं बहुत रोई। लेकिन पहली बार मैंने महसूस किया कि खुद को समझाने के बजाय, शायद अब विक्रम को यह समझने का समय आ गया था…