कहानी – मेरी बेटी मेरा अभिमान | My Daughter My Proud
कहानी – मेरी बेटी मेरा अभिमान – My Daughter My Proud | Hindi Story – Hindi Kahani
जब मेरी बेटी हुई तब काम कि वजह से मैं बहुत वक़्त अपनी पत्नी को नहीं दे पाया। मेरा कोई और है भी नहीं तो जो भी दिककते हुई वो मेरी पत्नी को अकेले झेलनी पड़ी। जब पत्नी कि हालत ज्यादा ही खराब हो गई तब मैने अपनी नौकरी से इस्तीफा देने कि सोची।
उस दिन दफ्तर वालों ने 15 कि छुट्टी दे दी। उसी दिन डॉक्टर ने बोला कि अब और इंतिज़ार नहीं कर सकते और मेरी बेटी हुई। बेटी को इनक्यूबेटर में रक्खा गया था, और मैं बहुत परेशान था।
जन्म के अगले दिन उसे दूध पिलाने के लिए मैं गया, और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इतनी छोटी सी बच्ची बिना माँ के वहाँ पड़ी है। वही पर एक और बच्चा था जिसकी नानी उससे दूध पिला रही थी। कुछ बातचीत हुई उनसे और तभी भावनाओ में बहते हुए मैंने कहा कि क्या फायेदा ऐसी नौकरी का जहां आपके पास अपने परिवार के लिए वक़्त नहीं है।
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उस महिला ने पलट कर बोला, बेटा अगर ये नौकरी न होती तुम्हारे पास तो क्या इस अस्पताल के महंगे बिल भर पाते तुम? मैं चुप हो गया, और समझ गया कि नौकरी तो मैं कैसे भी नहीं छोड़ सकता। क्योंकि ये तो अब पहले से भी ज्यादा जरूरी है इस बच्ची के लिए।
पहले कुछ दिन बेटी, जब रोने लगती तो फिर वो मेरे ही हाथों में आकर शांत होती। मैं बिल्कुल धार्मिक नहीं हूँ। पर एक रात जब वो रोती जा रही थी, पता नहीं मुझे क्या हुआ मैंने गांधी जी वाला “रघुपति राघव राजा राम” भजन टीवी पर सुनाया। उसे सुन कर वो सो गई। फिर उसके लिए घर में राम के भजन चलने लगे।
कुछ महीनों में मैं सब भूल गया और फिर से अपने काम पर पहले कि तरह काम करने लगा। 4 महीने कि बच्ची को भी वक़्त कि समझ हो गई कि 6 बज गए अब पापा आएगा।
अगर किसी का फोन आए और उसको बोलो बेटा बस 2 मिनट, वो 2 मिनट तक चुप हो जाती। आस पास के लोग बोलते बड़ी समझदार है आपकी बेटी। मुझे एहसास ही नहीं कि इसमे क्या समझदारी वाली बात है।
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इस मार्च को वो सवा साल की हो गई है। उसे बस 2 चीजे चाहिए होती थी मुझसे, सुबह 2-3 किलोमीटर का चक्कर लगा कर लाओ कार में। और शाम को 1 चक्कर अपनी बिल्डिंग के चारों तरफ।

मुश्किल से 30 मिनट पूरे दिन के। सुबह बस वो इंतिज़ार करती कि पापा कब तैयार होंगे। उस के बाद से पैरों के पास आ कर बैठ जाती जब तक में जूते नहीं पहन लेता फिर अपने हाथ बड़ा देती कि मुझे गोदी ले लो। फिर मैं उसे लिफ्ट में ले जाता जिसमे वो पता नहीं क्या गाना गाती रहती थी।
समझ कुछ नहीं आता पर हम भी गाने में साथ दे देते उसका। शाम को अगर मुझे आने में देर हो जाती तो बस दरवाजे पर आ कर बैठ जाती कि कब पापा आएंगे। पत्नी उसे 9-10 बजे सुला देती। पर जब रात मैं आँख खुलती तो अपनी माँ को छोड़ मेरे साथ चिपक कर सोती हुई मिलती।
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पर मार्च मैं एक दिन मेरा दिमाग बहुत ज्यादा खराब था। ऑफिस के लिए भी लेट हो गया था। मैं जल्दी से सीधा बेटी को इग्नोर करता हुआ दरवाजे पर गया। और जूते पहनने लगा वही पर। वो चुपचाप आई और मेरा पैर पकड़ कर खड़ी हो गई। मैंने उसे उठाया और पास ही रखे बीन-बैग पर बिठा दिया और चल गया।
शाम को मैं बहुत लेट घर आया वो सो चुकी थी। मेरा मूड देख पत्नी ने भी कुछ नहीं कहा। अगले 3-4 दिन जब मेरे जाने का वक़्त होता उसके पहले ही पत्नी बेटी को घुमाने ले जाती। मेरी उन दिनों अपनी बेटी से कोई बात नहीं हुई।
जब मेरा मूड ठीक हुआ तब मैंने उसे सॉरी बोला और घूमाने ले गया। उसने मुझसे कोई बात नहीं की। मैंने उस के साथ गाना गाने कि कोशिश की पर उसने नहीं गाया। अब वो हर वक़्त अपनी माँ के साथ रहती।
मैंने अपनी पत्नी को चिढ़ाते हुए कहा अब तो बहुत खुश होगी तुम कि लड़की तुमसे प्यार करने लगी मेरी जगह। 4-5 दिन लगे, पर उसके बाद फिर से बेटी अपने आप सुबह घूमने के लिए पास आ जाती है।
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पर अब वो सुबह से इंतिज़ार नहीं करती। शाम को अपनी माँ के साथ ही घूमने जाती है। लिफ्ट में अब गाना नहीं गाती। लगभग 2 महीने हो गए उस घटना को, अभी 2 दिन पहले मैंने किसी काम से छुट्टी ली। फिर वो काम भी कैन्सल हो गया तो मैं घर पर ही था।
मैंने नोटिस किया कि मेरी पत्नी उसे लगातार बुला रही पर वो सुन नहीं रही। वो उससे बात करने कि कोशिश कर रही पर वो इग्नोर कर रही थी। पूरे दिन मैं बेटी को देखता रहा, अब वो बहुत बदली हुई थी। हम बेटी को फोन नहीं देते, पर टीवी देखने देते है।
वो सिर्फ एक चीज पर ध्यान दे रही थी जब उसका मनपसंद कार्टून लगाओ टीवी पर। मैंने अपनी पत्नी से बात कि तो उसने कहा कि मैं तो कब से कह रही हूँ कि किसी डॉक्टर के पास चलो ये बात नहीं कर रही। इतने बड़े बच्चे कई चीजे बोल लेते है पर ये कुछ नहीं बोलती। फिर मुझे याद आया कि 2 महीनों से मैंने एक बार भी गाना गाते नहीं सुना।
अब वो मेरे पीछे पापा-पापा कहते हुए नहीं चलती। पहले वो मुझे आओ/जाओ बोलती थी। अब वो भी नहीं बोलती। डर से मेरी रूह कांप गई। की कही ऑटिज़म तो नहीं? रात भर नींद नहीं आई। अगले दिन छुट्टी ली। घर पर ही रहा। 6 बजे उसे घूमाने ले गया। उसे आज कार में भी घूमाया। बीच में पार्क भी ले गया।
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35-40 मिनट बाद हम घर आए। दिन मैं भी कोशिश कि वो बात करे। थोड़ा खेले मेरे साथ। शाम को जब उसका थोड़ा गुनगुनाना सुना, तो अच्छा लगा। मैं उसके साथ ही सोने गया। जब बिस्तर पर लेटे तो वो अपनी माँ के साथ ही लेटी, और मैं फोन पर कुछ पढ़ने लगा। 5-10 मिनट बाद वो धीरे से आई और चिपक के सो गई।
आज मैं ऑफिस आया हूँ। और सोच रहा हूँ कि जिसके लिए मैं ये नौकरी छोड़ने कि सोच रहा था आज उसी नौकरी के लिए उसे छोड़ के बैठा हूँ। फिर वो महिला याद आती है, जिसने कहाँ था कि अगर ये नौकरी नहीं होती तो क्या अस्पताल का बिल भर पाते?
नौकरी सही से नहीं करोगे तो आगे नहीं बढ़ पाओगे। टिक नहीं पाओगे इस जमाने में। और दूसरी तरफ आपका बच्चा है…. आपका परिवार है….